उत्तराखंड विधानसभा में पेश हुआ समान नागरिक संहिता विधेयक

देहरादून। ऐतिहासिक समान नागरिक संहिता विधेयक को कानून बनाने के लिए बुलाई गई विशेष विधानसभा के दूसरे दिन मंगलवार को उत्तराखंड विधानसभा में पेश किया गया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ‘जय श्री राम’ और ‘भारत माता की जय’ के नारों के बीच विधेयक पेश किया। यदि सदन द्वारा पारित किया जाता है, तो भाजपा शासित राज्य समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को अपनाने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा।

रविवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में राज्य मंत्रिमंडल ने सभी नागरिकों के लिए उनके धर्म, लिंग या यौन रुझान की परवाह किए बिना व्यक्तिगत कानूनों का एक सामान्य सेट स्थापित करने के उद्देश्य से यूसीसी विधेयक को मंजूरी दे दी। सूत्रों के अनुसार, आज पेश किए गए यूसीसी विधेयक की कुछ प्रमुख विशेषताओं में बेटे और बेटी के लिए समान संपत्ति अधिकार सुनिश्चित करना, वैध और नाजायज बच्चों के बीच अंतर को खत्म करना, गोद लिए गए और जैविक रूप से जन्मे बच्चों का समावेश और मृत्यु के बाद समान संपत्ति अधिकार सुनिश्चित करना है। अन्य प्रमुख संभावित सिफ़ारिशों में शामिल हैं, बहुविवाह और बाल विवाह पर पूर्ण प्रतिबंध, सभी धर्मों में लड़कियों के लिए एक समान विवाह योग्य आयु और तलाक के लिए समान आधार और प्रक्रियाएं लागू करना।

समान नागरिक संहिता का अंतिम मसौदा, जो चार खंडों में 740 पृष्ठों का है, 2 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता वाले पांच सदस्यीय पैनल द्वारा मुख्यमंत्री धामी को सौंपा गया था। सदन में विपक्षी विधायकों के विरोध के बीच यह विवादित बिल सदन में पेश किया गया। विपक्षी विधायकों ने विधानसभा में नियम पुस्तिकाओं की अनदेखी का आरोप लगाते हुए सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। एलओपी यशपाल आर्य ने कहा कि हम इसके (समान नागरिक संहिता) खिलाफ नहीं हैं। सदन कार्य संचालन के नियमों से चलता है लेकिन बीजेपी लगातार इसकी अनदेखी कर रही है और संख्या बल के आधार पर विधायकों की आवाज को दबाना चाहती है। प्रश्नकाल के दौरान सदन में अपनी बात रखना विधायकों का अधिकार है, चाहे उनके पास नियम 58 के तहत कोई प्रस्ताव हो या अन्य नियमों के तहत, उन्हें विधानसभा में राज्य के विभिन्न मुद्दों पर अपनी आवाज उठाने का अधिकार है।